अम्बिकापुर। 27 सितम्बर। सरगुजा संभाग सहित पूरे प्रदेश को झकझोर देने वाले संदीप लकड़ा हत्याकांड को लेकर जारी सियासत आदिवासी हित के नाम पर कुछ लोगों के हाथ में खेल रही है प्रारंभ में हत्याकांड का खुलासा कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद अब इस संगठन द्वारा भी गरीब के शव का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया जा रहा है अपनी मांगों को लेकर अड़े संगठन ने मृतक के परिजनों को भी अंतिम संस्कार से रोक रखा है और एक निर्दोष के क्षत विक्षत शव की और दुर्गति कराने पर तुला हुआ है।
विदित हो कि 6 सितम्बर को जब यह लोमहर्षक मामला सामने आया था तब इस मामले को सामने लाने और पुलिस की संदिग्ध भूमिका को उजागर करने में सर्व आदिवासी समाज ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए भी उचित दबाव बनाया था इसी का परिणाम था कि हरकत में आई पुलिस ने तत्काल मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी शुरू की और मुख्य आरोपी ठेकेदार को छोड़कर सभी आरोपियों को गिरफ्तार भी कर लिया।
इसके बाद इस मामले को लेकर राजनैतिक दलों ने भी सरकार को घेरा जो कि हर राज्य में विपक्ष का काम होता है इस बीच पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों और स्थानीय विधायक द्वारा भी मृतक के शव का अंतिम संस्कार करने का आग्रह परिजनों से किया। कुछ दिनों के आंदोलन के बाद परिजन तो इसके लिए तैयार हो गए परन्तु आदिवासी हित की बात करने वाले सर्व आदिवासी समाज द्वारा एक आदिवासी नव युवक के पहले से क्षत विक्षत शव की और दुर्गति कराने का मन बना लिया गया और ऐसी-ऐसी मांगे रख दी गयी जिसे कोई भी राज्य सरकार पूरी नहीं कर सकती है।
अगर जात-पात से हटकर देखें तो यह मामला सीधे-सीधे एक हत्या का प्रकरण है जिसमें आरोपियों ने बचने के लिए शव को निर्माणाधीन पानी टंकी के नीचे गाड़ दिया था मामले में कुछ पुलिसकर्मियों की भूमिका भी संदिग्ध है जिनपर आरोपी ठेकेदार व उसके साथियों का बचाने का आरोप है ऐसे मामले में मुख्य आरोपी को छोड़कर अन्य आरोपी पकड़े जा चुके हैं तथा पुलिसकर्मियों पर भी जांच की कार्यवाही हो रही है लेकिन सर्व आदिवासी समाज मृतक के परिवार को दो करोड़ का मुआवजा और सरकारी नौकरी देने की मांग को लेकर अड़ा हुआ है।
यहां यह बताना भी आवश्यक है कि शासन-प्रशासन व पुलिस के अधिकारियों द्वारा आंदोलनकारियों व परिजनों से चर्चा करते हुए 10 लाख का मुआवजा और मृतक की पत्नी को कलेक्टर दर पर शासकीय नौकरी भी देने को तैयार थे परन्तु खुद को आदिवासी समाज का ठेकेदार बताने वाले इस संगठन के कुछ लोगों ने बस रट पकड़ रखी है कि दो करोड़ का मुआवजा ही दिलवाना है और नियमित सरकारी नौकरी दिलवानी है। वहीं विपक्ष के कुछ नेता जो कि खुद भी आदिवासी हैं और पूर्व सरकार में मंत्री रह चुके हैं उनके द्वारा भी इस मामले का पटाक्षेप कराने का कोई प्रयास नहीं किया गया बस जो भी मांग है अपने राजनैतिक फायदे के लिए उसका समर्थन करते रहना है भले ही खुद भी पता हो कि ऐसी मांगों को पूरा करना संभव नहीं है और अगर है तो पूर्व की सरकार ने कितने हत्या के मामले में पीड़ित परिवार को दो करोड़ का मुआवजा और नियमित सरकारी नौकरी दी है यह भी उन्हें बताते हुए उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।
सर्व आदिवासी समाज के लिए तो यह उनके समाज से जुड़ा एक मामला है जिसपर वे सुर्खियों में बने रहने के लिए विरोध के नाम पर अब अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने में लगे हुए हैं पर यह भी अटल सत्य है कि जब से मानव समाज है और जब तक रहेगा समाज में अपराध होते रहेंगें। शासन प्रशासन व पुलिस के सामने ना तो यह कोई इस प्रकार की हत्या व पुलिस की संदिग्ध कार्यप्रणाली का पहला मामला है और कोई भी यह गारंटी नहीं दे सकता कि भविष्य में ऐसा कोई अपराध दुबारा कहीं नहीं होगा। ऐसेे में दो करोड़ का मुआवजा और सरकारी नौकरी देकर अगर मामला शांत कराया गया तो भविष्य में हर हत्या के मामले में हर समाज के लोग दो करोड़, पांच करोड़, दस करोड़ का मुआवजा मांगने लगेंगे। अभी जो लोग केवल सरकारी नौकरी मांग रहे हैं कल को विभाग व पद भी तय करते हुए वही नौकरी देने की मांग करना शुरू कर देंगें तो फिर क्या होगा?
सीतापुर के ही लोग बता रहे हैं कि वहां जो आंदोलन पर लोग पहले हजारों की संख्या में जुटे थे अब उनकी संख्या 20 से कम हो चुकी है और लगातार घटती जा रही है जिससे मृतक के परिवारजन भी शायद थक चुके हैं इसलिए राष्ट्रपति के नाम इच्छामृत्यु के लिए पत्र भेजा जा रहा है सबको पता है कि राष्ट्रपति भी ऐसी मंजूरी नहीं दे सकते लेकिन मामले को खींचने के लिए बस एक संगठन अपनी जिद पर अड़ा है अगर कल को सच में महिला ने व उसके परिजनों ने कोई गलत कदम उठाया तो इसके जिम्मेदार शासन-प्रशासन के साथ ही यह संगठन भी होगा और जितना नाम संगठन ने मामले को उजागर करके पाया था उसकी एक झटके में ही मिट्टी पलीद हो जाएगी।